Kalinjar Fort: History
प्रस्तावना
भारत की ऐतिहासिक धरोहर में किलों का महत्वपूर्ण स्थान है, और कालिंजर किला उन किलों में से एक है जो मध्यकालीन भारत के इतिहास को दर्शाता है। यह किला बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में स्थित है और अपनी रणनीतिक स्थिति, ऐतिहासिक घटनाओं और वीरता के कारण प्रसिद्ध है। कालिंजर किले का इतिहास लगभग 2000 वर्षों पुराना है, और यह किला भारतीय युद्धों, शाही वंशों और किलों की वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस लेख में हम कालिंजर किले के इतिहास, उसकी भौगोलिक स्थिति, प्रमुख शासकों और किले के उत्थान और पतन की कहानी पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
कालिंजर किला: भौगोलिक स्थिति
कालिंजर किला मध्य भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में चित्रकूट जिले के कालिंजर नामक स्थान पर स्थित है। यह किला सतना से लगभग 80 किलोमीटर दूर और कानपुर से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित है। किला बांधवगढ़ पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जो अपनी ऊंचाई और कठिन भौगोलिक स्थिति के कारण प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता है। किले तक पहुंचने के लिए एक कठिन रास्ता है, जो शत्रु के लिए इस किले को विजय करना लगभग असंभव बनाता था।
कालिंजर किला का इतिहास
प्राचीन काल में कालिंजर किला
कालिंजर किले का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है, जब यह क्षेत्र मौर्य साम्राज्य के अधीन था। कालिंजर का नाम प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है, और यह किला उस समय से महत्वपूर्ण सामरिक स्थान था। किले का निर्माण संभवत: गुप्त काल के दौरान हुआ था, हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसका निर्माण मौर्य काल में हुआ था।
कालिंजर किले की ऐतिहासिक शुरुआत में यह किला बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख स्थल था। माना जाता है कि इस किले के आसपास बौद्ध विहार और मठों की स्थापना हुई थी।
मध्यकालीन काल में कालिंजर किला
मध्यकाल में कालिंजर किला कई महत्वपूर्ण शासकों के अधीन रहा, जिनमें परमार वंश और चंदेल वंश प्रमुख थे। चंदेल शासक किले के प्रमुख शासक थे और उन्होंने किले को अपनी सामरिक शक्ति का प्रतीक बनाया। कालिंजर किला चंदेल वंश के शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण किला बन गया था और इस किले से बुंदेलखंड और उत्तर भारत के कई हिस्सों पर नियंत्रण रखा जाता था।
मुस्लिम आक्रमण और कालिंजर किला
कालिंजर किला तब ऐतिहासिक रूप से और भी महत्वपूर्ण बन गया जब दिल्ली सल्तनत और तुर्क आक्रमणकारी भारत में आए। इस किले की महत्वता के कारण कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाने का प्रयास किया।
सबसे प्रसिद्ध आक्रमण सुलतान महमूद ग़ज़नी द्वारा 1022 ईस्वी में किया गया था। महमूद ग़ज़नी ने किले पर हमला किया, लेकिन इसे जीतने में सफल नहीं हो सका। उसके बाद दिल्ली के सुलतान कुतुब-उद-दीन ऐबक और इल्तुतमिश ने भी कालिंजर किले पर आक्रमण किया, लेकिन हर बार किला अपनी मजबूत दीवारों और किलेदारों के कारण बचा रहा।
कालिंजर किला और मध्यकालीन राजपूत शासक
राजपूत शासकों ने भी कालिंजर किले पर अपनी नजरें जमाए रखीं। सबसे प्रमुख शासक वीर सिंह देव बुंदेला थे, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में कालिंजर किले पर नियंत्रण स्थापित किया था। वीर सिंह देव ने किले की सुरक्षा बढ़ाई और उसे और भी मजबूत किया। उनके शासन के दौरान, किला बुंदेलखंड के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक बन गया था।
मुगलों का आक्रमण और किले का पतन
मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान, 1569 में मुगलों ने कालिंजर किले पर आक्रमण किया। अकबर की सेना ने किले की दीवारों और सुरक्षा व्यवस्था को भेदते हुए किले पर कब्जा कर लिया। यह किले का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मोड़ था, क्योंकि इसके बाद कालिंजर किला मुगलों के अधीन आ गया।
कालिंजर किले की वास्तुकला
कालिंजर किला अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। किले की संरचना और निर्माण शैली में भारत के किलों के लिए विशिष्टताएँ हैं। किला लगभग 30 फीट ऊंची चट्टानों पर स्थित है और इसकी दीवारें और दरवाजे इस किले को अभेद्य बनाते हैं। किले के भीतर कई महल, जलाशय, मंदिर और अन्य संरचनाएं हैं। किले की दीवारों पर अंकित शिलालेख और चित्र इसे ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं। किले के भीतर स्थित मंदिरों में विशेष रूप से भगवान शिव के मंदिर की पूजा की जाती थी।
कालिंजर किले का वर्तमान स्थिति और संरक्षण
आज के समय में कालिंजर किला एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और राज्य सरकार किले के संरक्षण और रखरखाव के लिए प्रयासरत हैं। किले के आसपास के क्षेत्र में अनेक ऐतिहासिक अवशेष पाए जाते हैं, जो दर्शाते हैं कि यह किला कभी एक समृद्ध और शक्तिशाली स्थान रहा होगा।