भारत को रूस से मिला जंगी जहाज 'तमाल': विस्तृत रिपोर्ट
भारत और रूस के बीच दशकों से चली आ रही मजबूत रक्षा साझेदारी ने भारत की सैन्य क्षमताओं को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया है । इस सहयोग का एक नवीनतम उदाहरण जंगी जहाज ‘तमाल’ का अधिग्रहण है, जो भारतीय नौसेना की शक्ति में एक महत्वपूर्ण वृद्धि का प्रतीक है । यह अधिग्रहण ऐसे समय में हुआ है जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ रहा है , जिससे ‘तमाल’ का सामरिक महत्व और भी बढ़ जाता है। यह उन्नत युद्धपोत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नौसेना की रणनीतिक ताकत को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा । भारत का रूस पर रक्षा उपकरणों के लिए निर्भरता ऐतिहासिक रूप से अधिक रही है । हालांकि, ‘तमाल’ का अधिग्रहण इस निर्भरता के बदलते स्वरूप को दर्शाता है, क्योंकि भारत अब स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है । विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी इंगित करती है कि ‘तमाल’ भारत द्वारा आयातित अंतिम युद्धपोत होगा, जो स्वदेशीकरण की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है । यह प्रवृत्ति भारत की रक्षा नीति में एक रणनीतिक बदलाव का संकेत देती है, जिसमें आत्मनिर्भरता पर जोर दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, ‘तमाल’ जैसी उन्नत क्षमताओं वाले युद्धपोत का शामिल होना न केवल भारत की नौसेना की ताकत बढ़ाता है बल्कि क्षेत्र में शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है, खासकर चीन के बढ़ते समुद्री प्रभाव को देखते हुए । ‘तमाल’ का अधिग्रहण भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अधिक आत्मविश्वास के साथ अपनी उपस्थिति बनाए रखने में मदद करेगा।
जंगी जहाज 'तमाल': एक आधुनिक युद्धपोत
‘तमाल’ का निर्माण रूस के यांतर शिपयार्ड में हुआ है । यह 2016 में भारत और रूस के बीच हुए चार तलवार श्रेणी के स्टेल्थ फ्रिगेट्स के समझौते का हिस्सा है । इस समझौते के तहत, दो जहाजों का निर्माण रूस में और दो का भारत में किया जाना था । रूस में बनने वाले दो जहाजों में से पहला, आईएनएस तुशील, पहले ही भारतीय नौसेना में शामिल हो चुका है । रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 9 दिसंबर 2024 को रूस की अपनी यात्रा के दौरान इसे औपचारिक रूप से शामिल किया था ।
हालांकि, 2016 के समझौते के तहत जहाजों के निर्माण में कुछ देरी हुई है । विभिन्न स्रोतों में डिलीवरी की अलग-अलग संभावित तिथियों का उल्लेख है, जो परियोजना में देरी का संकेत देता है। रूस-यूक्रेन युद्ध और कोविड-19 महामारी जैसे कारकों ने समय-सीमा को प्रभावित किया । ‘तमाल’ को 28 मई 2025 को भारत को सौंपा जाएगा । औपचारिक रूप से इसे जून 2025 में भारतीय नौसेना में शामिल किया जाएगा । डिलीवरी से पहले इसके सभी ट्रायल अभी चल रहे हैं । ‘तमाल’ का भारतीय नौसेना में शामिल होना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा क्योंकि यह भारत का आखिरी आयातित युद्धपोत माना जा रहा है । इसके बाद भारतीय नौसेना के बेड़े में केवल स्वदेशी युद्धपोतों को ही शामिल किया जाएगा । यह जानकारी भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक स्पष्ट रणनीतिक बदलाव को रेखांकित करती है। ‘तमाल’ एक आधुनिक मल्टी-रोल स्टील्थ-गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट है । यह एक साथ पानी, हवा और सतह पर हमला करने में सक्षम है । इस पर निगरानी और लड़ाकू मिशनों के लिए मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर की तैनाती की जा सकती है । यह कामोव-28, कामोव-31 या ध्रुव हेलीकॉप्टर से लैस हो सकता है । ‘तमाल’ को दुश्मन के रडार का पता लगाने से बचने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो इसे आधुनिक युद्ध में उच्च उत्तरजीविता क्षमता प्रदान करता है । इस युद्धपोत का वजन 3,900 टन है ।
तकनीकी विशिष्टताएँ: 'तमाल' की शक्ति
‘तमाल’ की गति 30 नॉटिकल मील प्रति घंटा (55 किमी/घंटा) है । यह एक बार में 3000 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है । इसका डिस्प्लेसमेंट 3850 टन है , जबकि पूर्ण भार पर यह 4035 टन तक पहुँच जाता है । यह जंगी जहाज 18 अधिकारियों सहित 180 सैनिकों के साथ 30 दिनों तक समुद्र में कार्य कर सकता है ।’तमाल’ में रडार से बचाव की उन्नत तकनीकें शामिल हैं । इसकी विशेष बनावट इसे रडार की पकड़ में आसानी से आने से बचाती है । तलवार श्रेणी के युद्धपोतों को उनकी पुन: डिज़ाइन की गई ऊपरी संरचना और पतवार के कारण अर्ध-स्टील्थ क्षमताएं प्राप्त हैं, जो उनके रडार क्रॉस-सेक्शन को काफी कम करती हैं । पतवार में बाहरी उभार और सुपरस्ट्रक्चर में टम्बलहोम कोण होता है, जो रडार सिग्नेचर को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है । मुख्य 100 मिमी बंदूक (AK-190) में भी जहाज के रडार सिग्नेचर को कम करने के लिए स्टील्थ तकनीक का उपयोग किया गया है । ‘तमाल’ की ये स्टेल्थ क्षमताएं इसे आधुनिक नौसैनिक युद्ध में और भी प्रभावी बनाती हैं, जिससे दुश्मन के लिए इसका पता लगाना और इसे निशाना बनाना अत्यंत कठिन हो जाता है । स्टेल्थ तकनीक का महत्व आज के युद्धक्षेत्र में सर्वोपरि है, और ‘तमाल’ की यह क्षमता इसे एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संपत्ति बनाती है।
‘तमाल’ में आधुनिक सेंसर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियाँ भी मौजूद हैं । इसमें 3Ts-25E गार्पुन-बी सतह खोज रडार, MR-212/201-1 नेविगेशन रडार, केल्विन ह्यूजेस न्यूक्लियस-2 6000A रडार, लाडोगा-एमई-11356 जड़त्वीय नेविगेशन और स्थिरीकरण प्रणाली, फ्रेगेट M2EM 3डी गोलाकार स्कैन रडार, रेटेप JSC 5P-10E प्यूमा फायर-कंट्रोल सिस्टम, 3R14N-11356 फायर-कंट्रोल सिस्टम FCS, और 4 × MR-90 ओरेख रडार शामिल हैं । इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के लिए इसमें TK-25E-5 EWS और PK-10 शिप-बोर्न डेकोय लॉन्चिंग सिस्टम, और 4 × KT-216 डेकोय लॉन्चर भी लगे हैं ।
तलवार श्रेणी के युद्धपोत: भारतीय नौसेना की रीढ़
तलवार श्रेणी के युद्धपोत रूसी क्रिवाक III-श्रेणी के फ्रिगेट्स का एक उन्नत संस्करण हैं । भारत और रूस ने 17 नवंबर 1997 को तीन क्रिवाक III-श्रेणी के बहुउद्देशीय फ्रिगेट्स के लिए 1 बिलियन डॉलर का एक महत्वपूर्ण अनुबंध किया था । इस अनुबंध के परिणामस्वरूप, पहला फ्रिगेट, आईएनएस तलवार, मई 2002 में भारतीय नौसेना को सौंपा गया । तलवार श्रेणी के युद्धपोत वर्ष 2003 से ही भारतीय नौसेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं । तलवार श्रेणी के फ्रिगेट भारतीय नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति साबित हुए हैं, जो विभिन्न प्रकार के जटिल मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम देने में सक्षम हैं । इनकी बहुमुखी प्रतिभा इन्हें नौसेना के बेड़े का एक अभिन्न अंग बनाती है।
आईएनएस तुशील और ‘तमाल’ तलवार श्रेणी के फ्रिगेट्स की तीसरी खेप का हिस्सा हैं । इस तीसरी खेप के लिए महत्वपूर्ण अनुबंध अक्टूबर 2016 में हस्ताक्षरित हुआ था । इस समझौते के तहत, दो जहाजों का निर्माण रूस में (आईएनएस तुशील और ‘तमाल’) किया गया है, जबकि दो अन्य जहाजों का निर्माण भारत में गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (जीएसएल) में रूसी तकनीकी सहायता के साथ प्रगति पर है । आईएनएस तुशील को 9 दिसंबर 2024 को भारतीय नौसेना में कमीशन किया गया था । वर्तमान में, तलवार श्रेणी के 6 युद्धपोत भारतीय नौसेना के साथ सक्रिय सेवा में हैं, जो देश की समुद्री सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं । पहले बैच में आईएनएस तलवार, आईएनएस त्रिशूल और आईएनएस तबर जैसे शक्तिशाली जहाज शामिल थे । दूसरे बैच में आईएनएस तेग, आईएनएस तरकश और आईएनएस त्रिकंद जैसे उन्नत युद्धपोतों को शामिल किया गया था । गोवा शिपयार्ड में बन रहे दो अतिरिक्त स्टेल्थ फ्रिगेट्स के लिए इंजन पहले ही प्राप्त कर लिए गए हैं । पहला भारतीय निर्मित फ्रिगेट, आईएनएस त्रिपुत, पहले ही समुद्री परीक्षणों के लिए लॉन्च किया जा चुका है, जो भारत की स्वदेशी युद्धपोत निर्माण क्षमताओं में महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है ।
भारत और रूस के बीच रक्षा खरीद: एक व्यापक अवलोकन
भारत और रूस के बीच रक्षा व्यापार एक मजबूत और दीर्घकालिक साझेदारी का प्रतीक है, जिसमें भारत ने अपनी तीनों सेनाओं के लिए रूस से महत्वपूर्ण मात्रा में सैन्य उपकरण खरीदे हैं।
भारतीय सेना के लगभग 90% उपकरण रूस से प्राप्त होते हैं । मुख्य युद्धक टैंकों में टी-90 भीष्म शामिल हैं, जिनकी लगभग 1300 इकाइयाँ सेवा में हैं और इनका उत्पादन भारत में लाइसेंस के तहत किया जा रहा है । इसके अतिरिक्त, टी-72एम1 अजय टैंक भी बड़ी संख्या में (लगभग 2400) सेना में मौजूद हैं और इन्हें अपग्रेड किया जा रहा है । इन्फैंट्री फाइटिंग व्हीकल (आईएफवी) के क्षेत्र में, बीएमपी-2 सरथ एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी लगभग 2400 इकाइयाँ भारतीय सेना द्वारा उपयोग की जाती हैं। इनका उत्पादन भारत में होता है, हालांकि इनका मूल डिज़ाइन सोवियत संघ का है । वायु रक्षा प्रणालियों में 2K22 तुंगुस्का, 9K33 ओसा, एस-125, कुब, 9K35 स्ट्रेला-10 और ZSU-23-4M शिल्का जैसे सिस्टम शामिल हैं । रॉकेट और मिसाइल प्रणालियों में 9M119 स्विर एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल, स्मर्च 9K58 मल्टीपल रॉकेट लॉन्चर (42 इकाइयाँ), और अग्निबान (बीएम-21 ग्रैड का भारतीय संस्करण) सेना की मारक क्षमता को बढ़ाते हैं । भारतीय सेना अभी भी अपने अधिकांश भारी हथियारों के लिए रूस पर काफी हद तक निर्भर है, हालांकि स्वदेशीकरण के प्रयास लगातार जारी हैं । यह निर्भरता स्पेयर पार्ट्स और अपग्रेड के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं को दर्शाती है।
भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के लगभग 70% उपकरण रूसी मूल के हैं । लड़ाकू विमानों में सुखोई एसयू-30 एमकेआई शामिल हैं, जो वायुसेना के लगभग 14 स्क्वाड्रनों का गठन करते हैं । इसके अतिरिक्त, मिग-29यूपीजी और मिग-21 लड़ाकू विमान भी वायुसेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं । टैंकरों में आईएल-78 विमान शामिल हैं, जो हवा में ईंधन भरने की क्षमता प्रदान करते हैं । एडब्ल्यूएसीएस (एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम) विमान के लिए दो आईएल-76 विमानों को इजरायल से खरीदे गए उन्नत सिस्टम से लैस किया गया है । हेलीकॉप्टरों के बेड़े में एमआई-17 यूटिलिटी हेलीकॉप्टर, एमआई-35 अटैक हेलीकॉप्टर, एमआई-26 हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टर और कामोव एंटी-सबमरीन वारफेयर हेलीकॉप्टर शामिल हैं । मिसाइलों के शस्त्रागार में आर-77, आर-37, आर-73 हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें, ख-59, ख-35, ख-31 हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें और केएबी लेजर-निर्देशित बम शामिल हैं । इसके अलावा, भारत ने रूस से उन्नत एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम भी खरीदा है । वायुसेना अभी भी अपने लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों के एक बड़े हिस्से के लिए रूस पर निर्भर है, लेकिन राफेल जैसे पश्चिमी विमानों का अधिग्रहण इस निर्भरता को कम करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है । यह दर्शाता है कि भारत धीरे-धीरे अपने हथियार आपूर्तिकर्ताओं में विविधता ला रहा है।
भारत और रूस के बीच संयुक्त विकास और उत्पादन परियोजनाएँ भी रक्षा सहयोग का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं। ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल कार्यक्रम दोनों देशों के बीच सबसे सफल संयुक्त उपक्रमों में से एक है । 5वीं पीढ़ी का लड़ाकू जेट कार्यक्रम (FGFA) और सुखोई/एचएएल सामरिक परिवहन विमान जैसी अन्य परियोजनाएँ भी विचाराधीन हैं , हालांकि कुछ संयुक्त परियोजनाएँ वर्तमान में रुकी हुई हैं । मेक इन इंडिया पहल के तहत KA-226T ट्विन-इंजन यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों का उत्पादन भारत में किया जाएगा । AK-203 असॉल्ट राइफलों का भारत में संयुक्त उत्पादन भी एक महत्वपूर्ण परियोजना है । भारत और रूस के बीच संयुक्त रक्षा उत्पादन भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और रूस के साथ मजबूत संबंधों को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण तरीका है । यह सहयोग दोनों देशों के लिए पारस्परिक रूप से लाभकारी है।
यह तालिका भारत द्वारा रूस से खरीदी गई प्रमुख सैन्य प्रणालियों का एक संक्षिप्त अवलोकन प्रदान करती है। यह पाठक को दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग की सीमा को समझने में सहायक होगा। प्रत्येक श्रेणी (थल सेना, नौसेना, वायु सेना) के तहत प्रमुख प्रणालियों को शामिल करने से एक व्यापक परिप्रेक्ष्य मिलता है। मात्रा और स्थिति जैसी अतिरिक्त जानकारी तालिका की उपयोगिता को और बढ़ाती है।
निष्कर्ष: 'तमाल' का भारतीय नौसेना पर प्रभाव और भारत-रूस रक्षा संबंधों का भविष्य
‘तमाल’ का भारतीय नौसेना में शामिल होना उसकी मारक क्षमता और रणनीतिक पहुंच को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगा । यह उन्नत युद्धपोत हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री सुरक्षा को और मजबूत करेगा । ‘तमाल’ भारत का आखिरी आयातित युद्धपोत होगा, जो स्वदेशी रक्षा उत्पादन पर भारत के बढ़ते ध्यान को स्पष्ट रूप से दर्शाता है । भारत और रूस के बीच रक्षा संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं और भविष्य में भी बने रहने की पूरी संभावना है, हालांकि भारत अब अपने हथियार आपूर्तिकर्ताओं के विविधीकरण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है । संयुक्त विकास और उत्पादन परियोजनाएं दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग का एक महत्वपूर्ण पहलू बनी रहेंगी ।
तमाल’ का अधिग्रहण भारतीय नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जो आयात पर निर्भरता को कम करने और आत्मनिर्भरता की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है । भविष्य में, भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग का स्वरूप बदल सकता है, जिसमें संयुक्त विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाएगा । यह बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में दोनों देशों के लिए पारस्परिक रूप से लाभप्रद होगा।